Friday, May 14, 2010

Thursday, May 6, 2010

ॐ साईं राम

मंगल भवन अमंगल हारी,दॄवहुसु दशरथ अजिर बिहारि,
होवहि वही जो राम रचि राखा,को करि तरक बढावहिं साखा,
सुमति कुमति सब कें उर रहहीं,नाथ पुरान निगम अस कहहीं,
जहां सुमति तहां सम्पत्ति नाना,जहां कुमति तहां विपत्ति निधाना
जय साईं राम

घट घट वासी, सर्वव्यापी, मेरे हिरदे रहना

नानक दास सदा सरनागत, हर अमृत सजन मेरा"
संतमत:
"कहे कबीर तू राम की अंश"
परमात्मा का अंश तो परमात्मा ही हुवा न छोटासा....
सोने की इतनी बड़ी डली लेलो उसमे से थोडा टुकडा काट लो तो वो सोना ही है.....
शुद्ध सोना है हम सब, परंतु इस सोने को माया का,कर्मो का कचरा लग गया है, लेकिन कचरे में भी सोना है तो उसका मोल थोडी कम हो गया कोई, साफ करो उसकी कीमत वही है
कोई दोष, कोई खोट नहीं है हममे, कोई पापी भी नहीं है, पाप भी अपवित्र नहीं कर सकता हमें, अगर परमात्मा का अंश अपवित्र हो गया तो, परमात्मा भी अपवित्र हो सकता है
भगवन के पास न पाप जायेगा न पुण्य जायेगा, अगर सिर्फ पुण्य ही वहा जा सकता है, तो गलत है, फिर वो भगवान नहीं है, वहा सौदा नहीं है, वहा सिर्फ शुद्ध जायेगा...........
पाप भी बोझ है और पुण्य भी, दोनों का फल भुगतना है अच्छा या बुरा.....
लेकिन परमात्मा की भक्ति एक एसा यज्ञ है सब स्वाहा,पाप क्या पुण्य भी नहीं बचेंगा
"पुरन प्रगटे भाग्य कर्म का कलसा फूटा"
एक दिन एसा आता है भगवन की भक्ति-ध्यान करते-करते इतना तेज आ जाता है जो घडा है कर्म का जिसमे पाप-पुण्य जो कुछ भी भरा पड़ा है वो फुट जाता है और ये अंश परमात्मा में समां जाता है और परमात्मा ही हो जाता है.

मोक्ष

मन को अपना गुलाम बनाकर उससे मोक्ष का काम लेना चाहिए। मन को कामना,विषय, इच्छा और तृष्णा आदि से खाली करके उसमें ईश्वरीय प्रेम भरना चाहिए। सदैव चौकस होकर मन पर निगरानी रखनी चाहिए तथा आत्मसुख को पाकर उसी में मस्त रहना चाहिए। मन कोई वस्तु नहीं है। मन तुम्हारी ही शक्ति से कार्य करता है। तुम मन से भिन्न ज्योतिस्वरूप आत्मा हो।
hariom
यह जानना कि हमारा मालिक कौन है, आम इनसान के बस की बात नहीं। हमारे असली मालिक वह पिता-परमेश्वर हैं, जो हर समय हमारा ध्यान रख रहे हैं। चाहे हम सोए हुए हों या जगे हुए हों, वह हमारा ख्याल कर रहे हैं कि हमें कोई तकलीफ न हो, हमारे साथ सब कुछ ठीक-ठाक हो। हमें हर समय खाने की चीजें मिलती रहती हैं। चाहे वह कपड़ा पहनें, न पहनें, पर वह हम सबके लिए कपड़े जरूर तैयार रखते हैं। और हर समय, हर पल, हर जगह जहां भी हम हों, वह हमारे अंग-संग रहते हैं। अगर हम जान लें कि हम प्रभु के ही अंग हैं, उन्हीं का रूप हैं, तो फिर हम अपनी असली मंजिल की ओर बढ़ पाएंगे। महापुरुष हमें यही समझाते हैं कि हम इस माया की दुनिया के जाल में न फंसें।हम लोग यह भूल जाते हैं कि हम कौन हैं। हम सोचते हैं कि हम पिता हैं, माता हैं, बच्चे हैं, भाई-बहन हैं। हम सोचते हैं कि हम अध्यापक हैं, डॉक्टर हैं, इंजीनियर हैं। परन्तु हम सब भूल जाते हैं कि हम प्रभु की संतान हैं, हम खुदा के बंदे हैं, हम एक-दूसरे से अलग नहीं। प्रभु कहीं आसमान में नहीं, हम सबके अंदर बसे हैं। सारे महापुरुष इस धरती पर आकर हमें यही समझाते हैं कि हम यह जानें कि हम कौन हैं। ॐ साईं राम