Thursday, May 6, 2010

घट घट वासी, सर्वव्यापी, मेरे हिरदे रहना

नानक दास सदा सरनागत, हर अमृत सजन मेरा"
संतमत:
"कहे कबीर तू राम की अंश"
परमात्मा का अंश तो परमात्मा ही हुवा न छोटासा....
सोने की इतनी बड़ी डली लेलो उसमे से थोडा टुकडा काट लो तो वो सोना ही है.....
शुद्ध सोना है हम सब, परंतु इस सोने को माया का,कर्मो का कचरा लग गया है, लेकिन कचरे में भी सोना है तो उसका मोल थोडी कम हो गया कोई, साफ करो उसकी कीमत वही है
कोई दोष, कोई खोट नहीं है हममे, कोई पापी भी नहीं है, पाप भी अपवित्र नहीं कर सकता हमें, अगर परमात्मा का अंश अपवित्र हो गया तो, परमात्मा भी अपवित्र हो सकता है
भगवन के पास न पाप जायेगा न पुण्य जायेगा, अगर सिर्फ पुण्य ही वहा जा सकता है, तो गलत है, फिर वो भगवान नहीं है, वहा सौदा नहीं है, वहा सिर्फ शुद्ध जायेगा...........
पाप भी बोझ है और पुण्य भी, दोनों का फल भुगतना है अच्छा या बुरा.....
लेकिन परमात्मा की भक्ति एक एसा यज्ञ है सब स्वाहा,पाप क्या पुण्य भी नहीं बचेंगा
"पुरन प्रगटे भाग्य कर्म का कलसा फूटा"
एक दिन एसा आता है भगवन की भक्ति-ध्यान करते-करते इतना तेज आ जाता है जो घडा है कर्म का जिसमे पाप-पुण्य जो कुछ भी भरा पड़ा है वो फुट जाता है और ये अंश परमात्मा में समां जाता है और परमात्मा ही हो जाता है.

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